देश में जबरन धर्म परिवर्तन गंभीर मसला बनता जा रहा है। जबरन धर्मांतरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट 7 फरवरी को सुनवाई करेगा। सोमवार को कोर्ट ने सुनवाई के दौरान जोर देकर कहा कि धर्मांतरण एक या दो राज्यों से जुड़ा मसला नहीं है। धर्मांतरण पूरे देश में हो रहे कई मामलों से जुड़ा है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की डबल बेंच ने कहा कि बलपूर्वक या फिर लालच से धर्म परिवर्तन हो रहे हैं तो इसका पता लगाया जाए। और अगर ऐसा हो रहा है तो हमें क्या करना चाहिए?? और इसमें सुधार के लिए क्या किया जाना चाहिए इसके लिए केन्द्र सरकार मदद करे।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लालच, धोखा या बलपूर्वक किया जाने वाला धर्मांतरण देश के लिए खतरनाक और बहुत ही गंभीर मुद्दा है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से इसे रोकने के लिए ठोस प्रयास करने के लिए कहा है। कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि इस प्रकार का धर्मांतरण नहीं रोका गया, तो जटिल स्थिति पैदा हो सकती है। राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ यह नागरिकों के धर्म और अंतरात्मा की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के लिए खतरा बन सकता है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है। याचिका में लालच देकर और जबरन धर्मांतरण के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग की गई है। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी से जवाब मांगा है। याचिका में मांग की गई है कि डरा-धमकाकर, लालच देकर या फिर कई तरह के फायदे देकर धर्म परिवर्तन कराने पर रोक लगनी चाहिए।
तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन ने याचिका को राजनीति से प्रेरित बताया। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में धर्मांतरण का सवाल ही नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आपत्ति जताई। कहा कि कोर्ट की सुनवाई को अन्य मामलों की तरफ मोड़ने की कोशिश मत कीजिए। हम पूरे देश को लेकर चिंतित हैं अगर यह आपके राज्य में हो रहा है तो यह बुरा है और अगर नहीं हो रहा है तो अच्छी बात है। इसे एक राज्य को निशाना बनाने के तौर पर मत देखिए। इसे राजनैतिक मत बनाइए।
आपको बता दें कि वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए धर्मांतरण के खिलाफ केंद्र और राज्य सरकारों से सख्त कदम उठाने के निर्देश देने की मांग की थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बलपूर्वक धर्म परिवर्तन को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया था और केंद्र से धर्मांतरण पर कड़े कदम उठाने के निर्देश दिए थे। गुजरात सरकार ने शादी के लिए धर्म परिवर्तन से पहले जिलाधिकारी की अनुमति को अनिवार्य करने वाला कानून बनाया था। लेकिन गुजरात हाईकोर्ट ने इस कानून को स्टे कर दिया था। स्टे हटाने के लिए गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस दौरान गुजरात सरकार ने कहा था कि धर्म की स्वतंत्रता में धर्मांतरण का अधिकार शामिल नहीं है।
याचिका में कहा गया है कि जबरन धर्मांतरण पूरे देश की समस्या है और इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। याचिका में न्याय आयोग से भी एक रिपोर्ट और विधेयक तैयार कराने की मांग की है जिसमें डरा-धमकाकर या फिर लालच देकर धर्म परिवर्तन की घटनाओं पर नियंत्रण किया जा सके। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर आगामी 7 फरवरी को सुनवाई करेगा।